1 से 10 तक

1.आत्म-परिचय

श्री रूद्र मोहन तनय मैं हूं
कंढाल गांव में घर
कृष्ण प्रिया का नयन-मणि
नाम मेरा ब्रह्माशंकर ॥1॥

गोविंद प्रहराज का पडनाति मैं
त्रिलोचन जी का नाती
बालकृष्ण मिश्र दादाजी मेरे
कुंजाम गांव की ख्याति ॥2॥

कानन बाला सहधर्मिणी,
ससुर मेरे दिवाकर
सुनाम धन्य चित्रशिल्पी
“समाज” के व्यंग्यकार ॥3॥

पढ़ाई मेरी मैट्रिकुलेशन
छात्र ‘युवराज’ का
उच्च विद्यालय बनाया जिसे
महाराज श्रीकिशोर ने ॥4॥

सन् 1936
6 मई,बुधवार
वैशाख पूर्णिमा स्वाति तुला
मेष लग्न में हुआ जन्म मेरा ॥5॥

2॰ दुखहर्ता प्रभु

चरण कमल पकड़ साष्टांग प्रणाम करने से
आशीर्वाद देना ही होगा
पाँव नहीं होने का बहाना करने से 
उत्कल वल्लभ, कैसे होगा ?  ॥1॥

हाथ नहीं इसलिए
कुछ नहीं दे पाएंगे,ऐसा तो नहीं 
तुम पर आसक्ति रखकर
भक्त करते हैं अनुनय-विनय ॥2॥

चकाडोला की आंखेँ सभी को देखती है
दुखी लोगों का अगाध विश्वास
बड़े मंदिर में लक्ष्मी का अथाह भंडार है
वितरण करने से भी कभी शेष नहीं होगा ॥3॥

ध्वज लहरा रहे हो पतित-पावन
पतित लोगों का करके उद्धार
असह्य दुखों से पीड़ित आर्त-जन
हे! कृपा-सिंधु दुखहारी ॥4॥

दिनों-दिन दुख उछल रहा है
त्राहि-त्राहि प्रभु मधुसूदन
साधु सुधिजन सोच रहे हैं
क्यों हो प्रभु तुम मौन ॥5॥

ओड़िशा के नेता स्वयं नारायण
वे हैं हमारी वृत्त आंखें
पल भर में दुख हरते
भक्त एक तरफ कहते ॥6॥

आओ,अवतारी कल्कि-रूप में
काले-सफेद घोड़े पर हाथ में लेकर खड़ग
अधर्म,अनीति ध्वंस कर तिमिर का
सत्य का प्रभात परोस दो हमें ॥7॥

3. हरि-आर्त त्राण

तुमको भजने से हरि
अगर दुख मिलेंगे केवल
तुमको पाने के लिए
फिर क्यों भक्त होंगे अधीर ॥1॥

कैसे भजने से होऊँगा
मैं तुम्हारे निकट
सीखा दो हे नाथ !
न करके कोई कपट ॥2॥

तुम तो आर्त त्राण
क्यों निदारुण
ऐसे कैसे बढ़ेगा
तुम्हारा बड़प्पन ॥3॥

तुम्हारे आदेश-निर्देश
मेरे शिरोधार्य
कैसे जानूंगा मेरी
शक्ति,मन धैर्य  ॥4॥

मैं एक अकिंचन
कौनसी परीक्षा दूंगा
तुम्हारे दया के बिना
करुणा नहीं बरसेगी ॥5॥

इस भवसागर में
मैं कुछ भी नहीं हूं
क्यों डूबाते हो,क्यों उठाते हो
सिर्फ सोच सकते हैं  ॥6॥

मेरे जीवन की अवधि
तुम्हारे हाथों में बंधी
सब कुछ करते हो
कुछ भी नहीं दुविधा ॥7॥

जहां-जहां जो-जो देखा
हर तरफ तुम्हारी छाया
सर्वव्यापी सर्वरूप
तुम ब्रह्म अमाप ॥8॥

अपनी काया फैलाकर
रहते हो त्रिभुवन में
इस अनाथ की पुकार,प्रभु!
पडे तुम्हारे कानों में ॥9॥




4. आत्मा की पुकार,आशा का उन्मेष

तुम्हारे शिशु सुलभ भोले चेहरे की
शोभा बढ़ा देती मांग का सिंदूर
कांच की चूड़ियों की रुनझुन
बता देती तुम्हारी स्थिति
मन में याद आ जाने से चित्त अस्थिर
और कैसे देखता उन चित्रों का संग्रह ॥1॥

अवर्णनीय, केवल स्मृति-चिन्ह
उन स्निगधता भरी अनुभूतियों को भुला जा सकता है ?
तुम्हारे साहचर्य,सहयोग,निबिड आकर्षण से
मिलन-इच्छा बारंबार करती है आतुर
ऐसी कामना,वासना या अवास्तविक
अपने आप को समझाने से ही अच्छा ॥2॥

फिर भी क्यों होती है उन्मेष आशा मरीचिका की
नासमझ मन नहीं मानता आत्मा की पुकार
युगल जीवन का अंत इतनी जल्दी रंगहीन क्यों
ऐसा जटिल प्रश्न उठता मगर क्यों
इन सभी घुले-मिले तर्क-वितर्क की
आत्मा बारंबार जन्म लेती और सोचता रहता मैं निरंतर ॥3॥


5. स्मृति-परिणय

वह दिन था
एक शनिवार
तिथि हुई निर्धारित
महेंद्र लग्न
भोर-भोर
शंख,शहनाई,ढोलों की ताल
भाई-बंधु,बिरादरी
जन-परिजन
पहुंची खबर
कानों-कान
आ रहे हैं बाराती
साथ में वर  ॥1॥

तुम सुसज्जित
देह पर पाट-वस्त्र
पाँवों में आलता
गले में मणि-मुक्ता
ललाट चित्रित
काला काजल
जुड़े की माला
लाल गाल
हुलहुली गान
थिरकता हृदय
दर्शक कह उठे
सुंदर वधू अप्रतिभ ॥2॥

बात-बात में कहते
विधि का लेखा-जोखा
कौन किसका
पहले से स्थिर
दुल्हन उसकी
जिसकी हांडी में
गिरे होंगे चावल एक बार
निश्चित पकड़ेगी हाथ
नहीं होगी कभी अन्यथा
सात जन्मों के
बंधन सहमति से ॥3॥

पुरोहित के मंत्र
श्लोक,आहूति
सुसज्जित मंडप वेदी पर
सुशोभित अग्नि कविता ज्योति
सूर्याग्नि-सी मंडप की अग्नि
सर्व समक्ष रखकर साक्षी
पाणि-ग्रहण के बाद
सिंदूर तिलकित भाल
सीमन्तिनी वेश में सजी-धजी
अपलक निहारता आत्मविभोर होकर
शोभा उसकी  ॥4॥

6. समय बलवान

समय आने से सब ठीक हो जाएगा
हितैषी,बंधु,गुरु-जन,पिता-माता का
सुन-सुनकर जीवन के वास्तविक वैभव
वाक्य उच्चारित होते हैं कितने सहज में ॥1॥
किसके लिए वह समय कभी आ जाता है
और किसी के लिए वह समय बिल्कुल आता नहीं
क्षणिक भावना आश्वासन क्षण भर में अंतरनिहित
जीवन जीना होगा,सत्य में निस्तार कहाँ ? ॥2॥
दूरद्रष्टाओं ने कहा,समय है बलवान
दूर की व्यथाएँ जीवन को छिन्न-भिन्न करती है
सहने के लिए शक्ति दो प्रभु,एक दिन तो लाघव होगा
घने अंधकार में विश्वास लाती है बिजली ॥3॥
क्या है कर्तव्य-अकर्तव्य, विवेक लगाओ
 मन के घोड़े को लगाम दो,करो नियंत्रण में
दूर होगी दुर्दशा,पथ दिखेगा,चलते रहो
सिर्फ निष्ठा चाहिए, बंधु आया समझ में ॥4॥


7. बंधुता टूट जाएगी

हमारी बंधुता टूट जाएगी
सहज में भाइयों में दुश्मनी
कब किस समय
अपने पावों पर खड़े होने के लिए
अपने पारिवारिक हितों का भ्रूक्षेप न कर
सहायता की थी तो क्या हो गया ?
आसानी से कहा जा सकता है
बड़े भाई ने अपना कर्तव्य निभाया
मैं अब शुद्ध (अ)संसारी
समय नहीं सोचने की विगत की बातें
एक बार मुंह मोड़ने से
हृदय विदारक बातें कहकर
कृतज्ञता का लोहावरण
विस्फोट से चूर-चूर हो जाएगा
कर किनार निर्विकार 
सबंध का पतला धागा
होगा टूटा-फूटा दर्पण
चुन-चुन कर ऐसे भाइयों को
खोजने होंगे,जिन्होंने भाइयों से
अविचार हो गए अकृतज्ञ
दोस्ती का हाथ बढ़ाकर पास आओ
अमनुष्यता में होगे अभिज्ञ
बहनोई जो भाई-भाई के बीच
शत्रुता के बीज बोकर महाद्रुम किया
गहरे संबंध बनाने होंगे
तब जाकर कृतज्ञता की जड़ें उखड़ जाएगी
मगर हमारी बंधुता रहेगी
भाईचारा हट जाएगा ।


8. तुम मेरी चिरंतन छाया

तुम अविछेद्य चिरंतन छाया
जिनकी आंखों में आंखें मिलाकर
प्रेम से फेर  दिए नयन ॥1॥
एक बार बिना  देखे जिसे सुना जा सकता है
जिसके एक इशारे से मग्न हो जाता है
पाने  पर जिसे पूरी तरह भीग जाते हैं॥2॥
तुम्हारा वही जोड़ बाकी
गणित शास्त्र का गुणा भाग
मिश्रण का यौगिक असल द्रव॥3॥
अकेले छोड़कर मुझे क्यों चली गई
सोच रहा हूं ऐसा होना तो न था
वास्तव में तुम्हें ठग तो न दिया॥4॥
दिन का समय तो जैसे-तैसे कट जाता है
रात होने पर चकोर खाली देखने लगता है
किसी का अभिशप्त अदृष्ट या भाग्य-लिपि॥5॥
नहीं नहीं मेरी भावना सच न हो
तुम जहां भी हो जैसे भी हो मेरे पास हो
होमाग्नि के सामने खाई हैं शपथ ॥6॥
हाथ पकड़कर बिताएंगे जीवन
आपद विपद में हम दोनों हैं सखा
क्रूर काल कराल ने कर दिया विच्छिन॥7॥
सात जन्मों का हमारा बंधन
स्वर्ग में ब्रह्मा  ने लिखा विधान
शरीर नश्वर, मगर आत्मा अमर॥8॥
युग-युग में संसार में लेंगे जन्म
जगन्नाथ लक्ष्मी की गोद में लोटे जैसे
सार्थक होगी स्मृति कथा पूर्व जन्म की॥9॥

9. गणतंत्र और संविधान

गणतंत्र ने दिया है मंत्र
रचा है संविधान
उसका मौलिक ढांचा नहीं है कच्चा
दिया है नागरिकों को मान॥1॥
कसौटी पत्थर से  तरह तरह
जितना जो परखा
क्या अच्छा,क्या बुरा करके तौल
पता चला निरख कर॥2॥
कपटी विटपी आंचल पकड़ कर
नाना विभेद बुनकर
सार सार को गही रहे,थोथा दहि उड़ाए
इस समय पकड़े गए ॥3॥
सत्ता के नशे में खेल रहे थे पासा
धर्म के तराजू में
उलटने पर लज्जा को भी लाज आ गई
अनुगामी चिल्लाने लगे ॥4॥
उनके  हिसाब के  अंकों में
हो गई  भूल
श्री अंग आघात से दुख हुआ द्विगुणित
हुए कामरेड  कायल॥5॥
एनडीए-यूपीए कोई कम नहीं
म्लेच्छ, दलित पीछे
“नौ” परिच्छेद में था खाद्य
फटे  कानों में साँय-साँय ॥6॥
मंडल, साचर समिति और उनके परिवार
विश्वनाथ प्रताप सिंह, लालू यादव,राम विलास पासवान
राह  ढूंढ रहे इधर-उधर
चेहरा हो गया  मलीन॥7॥
आशा विश्वास भरा  हमारा न्यायालय
न्यायाधीश, दंडाधिपति
न्याय वितरण व्यापार में विशेषज्ञ
विधि विधान संचारण में  ॥8॥
हमारा संविधान विश्व में महान
करता नीति  निर्धारण
गणतंत्र सीमा को मानने से
होगा सम्मान॥9॥
मेरे भारतवासी,न्याय विश्वासी
हर तरफ उच्च नागरिक
अविचारी गण,हो जाओ सावधान
कटु सुर्पणखा कान ॥10॥

10॰ सारस्वत बंधु संभाग संभाषण

आए हो मेरे बंधु
राज्य के सारे कहानीकार, कथाकार
हास्यकवि,कवि,नाट्यकार
दिखाया जाएगा आपको एक बार हमारा तालचेर॥1॥
तुम्हारी कलम के मून से,तूलिका से छबि में
रंग में,छंद में,भाव विन्यास में
सरस,विरस,विलास,विद्वेष
तुम जिस तरह जिसके लिए करोगे अंगीकार ॥2॥
परिषद काव्य, कविता व्यंजन
कौन सारस्वत किस प्रकार से
मन को छू सके इस तरह रसोच्छ्वल
मर्मस्पर्शी शब्दों के संभार में॥3॥
पुरातन,आधुनिक विभिन्न शैली में
घुली-मिली कुछ कृति अमिताक्षर में
पुराने में अगर नहीं अनादर
नया कुछ सृष्टि करने के नशे में ॥4॥
कौन कैसे पहले से आया होगा
अतिथिगृह में कुछ काम से
काम खत्म कर जा चुका होगा
आज आगमन अतिथि के रूप में ॥5॥
रस्सी जल गई मगर ऐंठ न गई
मूँज कहेगी क्या था तालचेर में
सिंधु से संग्रह करेगा सीपी ससम्मान॥6॥   
प्रति मुहूर्त यहाँ उठता है, गिरता है
काले हीरे के शिल्प विप्लव में
गगन पवन जल,थल हमारे निश्वास में
स्थान लेते हैं विष अति स्वच्छंद से ॥7॥
तापज विद्युत लोहे के जितने कारखाने
बैठे हैं, बैठेंगे अति श्रद्धा से
पुरखों की जमीन उजड़ रही है
संसार होगा उलट-पुलट
विकल क्रंदन सुनाई देगा विस्थापित घरों से ॥8॥
अगर समय मिलेगा तो जाना सुविधा से
देखोगे पहाड़ नए काली मिट्टी के
उजड़ गया है जंगल,झरना सूख गया है
धरती जीर्ण-विदीर्ण डायनामाइट से॥9॥
थोड़े समय के लिए हमारे गहन में
तुम्हारा उपस्थिति हमारा आनंद
अभ्यर्थना करते हम स्वल्प संबल से
पता नहीं,कैसे संतुष्ट हमारे व्यवहार से ॥10॥
विदाई लेते समय होंगे उपस्थित
आज शुभ अवसर के अंत में
हे!बंधु तुम्हारे सान्निध्य की अग्रिम आशा करता हूं
नत मस्तक होकर श्री जगन्नाथ,मां हिंगुला के ॥11॥

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