31 से 40 तक

31. छत्तिसा नियोग सेवा

त्रिभुवन में एक देवता
जगन्नाथ सामंत
वह तो वर्णनातीत
न आदि न अंत ॥1॥
अपलक नेत्रों से देखते
स्वर्ग,मर्त्य,पाताल
निगाहें सभी जगह केन्द्रित
सीमाहीन सचल ॥2॥
छत्तिसा नियोग सेवा
सेवा के बदले मेवा
पुरुषानुक्रम भोग करते
आह! कितना मनमोहक ॥3॥
सेवा की विधि
रीति-नीति विधान
अनुल्लंघनीय
रचित तुम्हारा सम्मान ॥4॥
हे सम्मानीय छत्तिसा
नियोग सेवाकारी
ऐसा कर्म न करो
जो हो निंदाकारी ॥5॥

32.प्रेम (वैलेंटाइन डे के अवसर पर)

प्रेम नहीं होता है केवल
देह मिलन
उसी तरह मग्न थे तो
चिर-मिलन
प्रेम में जब दो आत्माएं
होती है एकाकार
बंधन हुए अटूट कहता है अनाकार
प्रेम में ऋतु,तारीख,वार वैलेंटाइन
जरुरी नहीं होता दिन-रात चालू आइन
जो वस्तु करती आकर्षण
एक-दूसरे से करेगा कैसे समर्पण
प्रेम की गंभीरता मापने का मंत्र कहाँ है
अनिर्वचनीय वास करता है हृदय-कन्दरा में॥5॥
भावुक की भावना,कवि की कल्पना, दूसरों की अनुभूति
का मोहताज नहीं प्रेमी युगल मूर्ति ॥6॥
वह तो विस्मय,अभय निर्भय कोलाग्रत
लालसा विहीन अनुरक्ति संयम,सुसंहत ॥7॥
भ्रमण कर सकता है अनंत,आकाश,पाताल
पृथ्वी में जन्म उसका दुर्लभ असंभाल
लेने को उसको देवतागण उतर आते हैं
लेकर नर देह मर्त्य में सृष्टा किवदंती
सृष्टि कर्ता ब्रम्ह बनाएं देकर मनुष्य जन्म
प्रेम की जय-जयकार
निस्तार हो मतिभ्रम

33. मेरी उत्कल जननी
आज तुम्हारी रूप की पूजा करता हूँ प्रातःवेला में
हे मेरी उत्कल जननी! भावपूर्ण अंतर में
केवल वंदना करता हूँ करबद्ध मेरी माँ
पढ़ता नहीं और मैं, खगोल-भूगोल ।। 1 ।।
तुम्हारा इतिहास महिमा मंडित अति प्राचीन
मगर तुम्हारे जठर से जन्मे कुछ गवेषक गण
कहीं पर कुछ भी देखकर देते हैं भाषण
कहीं उन पुराने तथ्यों को नहीं मानता विज्ञान ।। 2 ।।
कला में उत्कर्ष होने से नाम तुम्हारा ‘उत्कल’
मातृभाषा ओडिया का विषय आज बना इच्छाधीन
कला के सारे विषय ओडिया, इतिहास, भूगोल
महाविद्यालय, विश्वविद्यालय में उनका स्थान न्यून ।। 2 ।।
कहते हैं सभी रा, रा जैसे काले कौए गण
विश्व बाजार में लोहा देता हमारा नेतृत्व
पढ़ाई सरल करो भले ही न हो उसमें मनुष्य पण
रोजगार मात्र एवं लक्ष्य, भले ही ज्ञानी सहे अपमान ।। 3 ।।
आईआईटी आईआईएम इंजीनियरिंग की शिक्षा
मास के अंत में एक करोड़ मिले, उसकी शिक्षा
मां को जो नचाते-चलाते यंत्र ‘रिमोट’ से ।। 4 ।।
मेरे शैशव का वैभव मुझे याद नहीं
केवल याद मां-बाप की डांट-फटकार
रूटीन जीवन बीटा सरसता से सारे कानों में
यौवन का उद्धम, बिना अनुभव, लाउटेगा फिर एक बार । 7 ।
स्नेह,ममता,सरलता,उदारता आदि गुण
दया, क्षमा, बंधुता, भाईचारा और स्नेहशीलता
अच्छा नहीं लगता सुनने और कहने मे कड़वा । 8 ।
विश्व के सभी देशों मे आईटी ज्ञान का विस्फोट
साहित्य, कविता, प्रबंध सभी बिना व्याकरण
बताने वर ‘ह्यूमन’ राइट की शरण
मानवीय गुणों की गुणवत्ता आज होगाई अकारण । 9 ।
माँ, मेरी अंतरात्मा का गुमदता आर्तनाद
होगा उजियाला बादल हटने से, प्रकट होने से सूर्य
सब समझकर नासमझ, सुनकर अनसुना करने का भेद
विज्ञान पीछे छोड़ ‘कला’ की बजेगी तूर्य । 10 ।
मेरी उत्कल जननी, तेरी साधना की होगी जयजयकार
एम एफ़ हुसैन कलाकार पापिष्ठ पामर
कला के नाम पर कलंक, भ्रष्टाचारी चाटुकार
मिटी नहीं, विलय वहीं दुष्कृति समय नहीं दूर । 10 ।
वधुर मूर्छना निनादित कोयल का कुह
निष्ठुर हृदय सुनोगे, विगलित होंगे धन्य
होगा मंत्रित, जननी जन्मभूमि स्वर्गादापि महियसे
पश्चाताप से दुखी पुत्र को गोद में लेकर हंसी-हंसी । 11 ।


34-तालचेर ग्रामवासी
कभी तालचेर के ग्रामवासी
एकता के सूत्र में बंधे
रहते थे मिल-जुल ।
पेशे से किसान
सुख-दुख में एक साथ
आपस में हंसी खुशी
हमेशा कर्मठ
वचन के पक्के
प्राण जाए पर वचन न जाए ।
बिना विचलित हुए
गाँव का मुखिया चिंता करता था
गाँव के विकास का चिंतन ।
हर दिन खाते बासी पखाल
पत्ता-सब्जी खारा-खट्टा
जला बैंगन, मगर खुशहाल
आदमी का आदमी पर विश्वास
दुख बांटने में हमेशा अग्रसर
अडिग आत्मविश्वास के साथ।
उस समय तालचेर वासियों ने
राज-विद्रोह की ज्वाला जलाई
जोश खरोश कमरकस ।
गोरे अंग्रेज़ व्यापारी
जिनके साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं होता
निर्निमेष नेत्रों से देखते थे
अब एमसीएल, एनटीपीसी की
नौकरशाही और काले साहबों
का शासन दिल्ली के सिंहासन से

अब तालचेर ग्रामवासी
एकता-सूत्र व स्वाभिमान छोड़
हीन समझते हैं अपने आपको
कहते हैं किसान
गाँव के चौपाल की घटिया राजनीति
असली नकली सभी टाऊटर
सभी की नजरों में पी सी ....?
भविष्य का क्या होगा
बुजुर्गों की बातों पर सोचने का वक्त कहाँ ?
अगर समय रहते नहीं चेते
तो सब ढह जाएगा ।
बचे हुए ज्ञानी तालचेर वासी
जागो, विश्वास रखो अपने सामर्थ्य पर
अत्याचार के ज्वार में मत बहो ।
आज के तालचेर ग्रामवासी
अपनी इज्जत का अनुभव, एकता का अस्त्र
समझौता,कलुषता को छोड़
तेजी से धावा बोलो।
जिससे हिल जाएगा शासन-प्रशासन
एमसीएल,एनटीपीसी
वह शुभ घड़ी आ गई अब
एकाग्रचित्त होकर पकड़ लो जाने
और सब कुछ बासी हो जाएगा
हाथ से निकल जाएगा। 
35. गणतंत्र गिरा घुटनों के बल

गणतंत्र वास्तव में घुटनों के बल गिर गया है
झुक गया है उम्र के भार से
स्वर्ण सुयोग क्यों छोड़ेगा
सैनिक शासन पहुंचा देश के द्वार पर ॥1॥
जनतंत्र को सादर आमंत्रण
जितनी भी नाक रगड़ने से
सारे देश के जितने “आम आदमी”
तुम जैसे भी हो उसके लिए दूसरे ही हो ॥2॥
जो नहीं भारत में, वह नहीं मर्त्य लोक में
कौन क्या करेगा किसी के हित में
सच-झूठ पर कैसे होगा विश्वास
केवल विभ्रांत चलेगा किसी मत में ॥3॥
वाम,दक्षिणपंथी के बीच वाले जाएंगे तर
उदार, कट्टर जिसका पलड़ा भारी
अपने पराए की होगी पहचान कैसे ?
नक्सली,माओवादी,आतंकवादी ने खत्म कर दी सारी ॥4॥



36. बाकी दूसरे जन्म में

और क्या मांगू तुमसे
तुम मेरे अनंत आकाश
जहां मैं मन से विचरण करता हूं ॥1॥
तुम मेरे जीवन पवन
देह पर मेरे लगने से
सिर्फ अनुभव में आते हो ॥2॥
तुम मेरे कुसुम की सुगंध
मेरे मन को आनंदित करते हो
देकर उन्माद,वासना,कामना ॥3॥
तुम मेरे निर्झर जल
कल-कल,छल-छल, अविरत बहते रहते हो
संपूर्ण अवगाहन गात्र निम्मजित ॥4॥
तुम मेरी अविनाशी आत्मा
जिनके पास खुद समर्पण करता हूं
अतीत,वर्तमान,भविष्य सब करके एकाकार ॥5॥
कुछ न अदेय, न कोई कुंठा
हे! स्वाधी अन्नपूर्णा की तरह देते रहते हो
क्या और मांगू तुमसे,बाकी दूसरे जन्म में.....  ॥6॥




37.कन्या-भ्रूण के नाम पर एक चिट्ठी

पुरुष के मन मुताबिक उसकी कामना,वासना,व्यसन
पूरा करना स्त्री का धर्म
पहले से ही पूर्वजों ने किया है विधान
वंश कुल बचाने के खातिर मर्म ॥1॥
मुझे ले गए थे मेरे पति एक क्लिनिक सदन
निर्विकार भाव से कह रहे थे,होगी लिंग की पहचान
देख रही थी उनके आहत  चिंतित नयन
यहीं से शुरू होता है बेटा-बेटी के भेदभाव का प्रचलन॥2॥
सिर ऊपर उठाकर क्लीनिक की डाक्टरानी सहास्य
पूछने लगी कितने महीने हुए बहिन
प्रश्न सुनकर नर्से और दाइयाँ हंसने लगी मन ही मन
क्यों झूठमूठ सुनाएगी अपनी कहानी ॥3॥
पिता का इशारा पाकर डॉक्टरानी
वह पुरुष शायद हो उसका स्वामी
निर्देश देते सुनाई पड़ी उसकी वाणी
कौनसी परीक्षा की, जानेगा अंतर्यामी ॥4॥
बिना के धीमे स्वर में उसने पिता से कहा
इस समय कानून हो गया है अतिक्रांत
गर्भ में कन्या भ्रूण की समझाते बात
जल्दी से काम तमाम कर दो,बिना हुए विभ्रांत ॥5॥
डॉक्टर की सलाह सुन कर मन हुआ आनंदित
गोद में होगी नहीं बेटी, लक्ष्मी तो आती-जाती है
हम दो हमारे एक कन्या होगी सत
पिता तुम्हारे मेरे साथ हुए अमत
गुस्से से चेहरा लाल हो गया, जीभ हो गई कड़वी
चिल्लाकर कहने लगे,तुम्हारा दिमाग हो गया खराब
देख नहीं रही हो आजकल बहुओं की जलती चिता
बेटियों को वे जन्म देती है,जिन्होंने पूर्व जन्म में किए हैं पाप ॥7॥
जन्म देना कर्म मेरा हो बेटा या बेटी
धैर्य धरो मत हो पागल बेटे खातिर
छोड़ औरतना बातें, नहीं आऊँगा तेरे झांसे
क्यों निष्ठुर बात कहकर समझाई ॥8॥
झगड़ पड़े सास,ननद,देवर
कितना सुनाया खोकर संयत
चुपचाप राजी होजा बिना किसी झंझट, कन्या भ्रूण गिरा
मेरी इच्छा-अनिच्छा से दूर मैं हुई पराहत ॥9॥
जन्म होने पर कोई कहेगा,होगी लक्ष्मी,सरस्वती
क्लीनिक के डाक्टरानी के हाथों निर्विचार हुई उसकी हत्या
सूर्यालोक देखने से पहले ही भोगी दुर्गति
हीन स्त्री जीवन धिक्कार सहन करती अगत्या॥10॥
आहे! नारीगण जागो बनकर काल,काली,कराली
कात्यायनी,दुर्गति-नाशिनी, दुर्गा,महिषा-मर्दनी
अबला नहीं,दुर्बला स्वयं शक्ति स्वरूपिणी
अस्तित्व तुम्हारा,महियसी,गरियसी,विश्व-कल्याणी॥11॥


38. हर जगह नारी

मिट्टी में गाड़ने से नारी
होती है अंकुरित
अपने आप हरियाली
छाया विस्तारित ॥1॥
उसी आंचल में
आश्रय पाता शिशु
उसकी क्रोड विशालता
राम,अल्लाह,यीशु  ॥2॥
कहते हैं नारी की माया
भगवान भी नहीं जानते
अज्ञानी पापी लोगों के
मन में होती है भ्रांति ॥3॥
नारी पुरुष के प्रिय
अंत मनसत्व
समझने में असक्षम
नर-मोहग्रस्त ॥4॥
काव्य कविता के अंग
उपमा आधार
चंद्रमुखी हरिनाक्षी
महिमा भास्कर ॥5॥
गल्प,प्रबंधक आकार
साथ छाया की तरह
वर्णन के ग्रंथागार
सभी को समेटकर
ऐसे कैसी कथा
गाता बनेगी लेखा
स्रष्टा, सृष्टि या प्रलय
नारी को इंतजार ॥7॥
उदय से अस्त तक
घनी रात
उबड़-खाबड़ रास्तों में
देती है सरसता
अंग सौष्ठव, संभार
मधुचक्र सिक्त
संक्रमित मृदु हास्य
आह्वान सशक्त
मुनि ऋषि महायोगी
तत्वज्ञ  नारद
माफ नहीं सके थाह
अमूल्य संपद की
सभी कथाओं में विचार
आचरण संयम से
नहीं होगा अपहुंच
रहेगी मान मर्यादा।



39.मनमोहन अमर्त्य सेन से भेंट

पार्लियामेंट के विशाल केंद्रीय कक्ष में
हीरेन मुखर्जी स्मृति वक्तव्य शृंखला के अवसर पर
नोबेल विजेता अमर्त्य सेन की
अर्थनीति के विद्वान मनमोहन से
भेंट हुई स्नेह से ॥1॥
बोले दादा अमर्त्य
प्रतिबंध,सहज,मूल्यहीन
क्या होगा श्रीवृद्धि वर्णन से
यदि उससे न दिखता हो रास्ता
और प्रभावित नहीं होती हो
प्रांतों की जनता ॥2॥
कहां प्राचुर्य,प्रमुख रूप से
शिक्षा,स्वास्थ्य और अन्य सेवा क्षेत्रों में
देश में प्रतिभा अनन्य
चिकित्सालय,चिकित्सक असामान्य
मगर साधारण लोगों को
ये सारी सुविधाएं,सुअवसर
नहीं मिल पाती बिल्कुल भी
मौलिक शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं का
इंतजार करते-करते हो जाते म्रियमाण ॥3॥
मित्र मनमोहन के संभाषण का
प्रत्युत्तर याद किया महाशय सेन ने
जब दोनों सहकर्मी थे
दिल्ली के अर्थनीति विश्वविद्यालय में
एक बात कही थी प्रधानमंत्री ने आज
थे चिंताग्रस्त,कैसे योग्य होंगी
सुव्यवस्था साधारण आवंटन की ॥4॥
अमेरिका भारत की अणुशक्ति पर विव्रत
वैश्वीकरण,उदारीकरण,निजीकरण
प्रमुख प्रवक्ता मनमोहन
अवश्य खोजेंगे पारदर्शी कथाओं के उद्धरण
हाथों में लेकर अपरिमित सत्ता का उत्स
व्यवस्था सुधारेंगे,क्या उठाकर सेन ॥5॥

40-लक्ष्मण रेखा

मेरी लाड़ली बेटियों ने
एक बार कहीं सुना पढ़ा, गिना था
पौराणिक रामायण की सीता-कथा
नहीं तो एकाध बार थोड़े कौतूहल से
देखि होगी दूरदर्शन पटल पर
उन दिनों की प्रसारित गाथा।
गुलाब कलियों के खिलने की आशा में
विकसित सरस सुंदर
सुगंधित जगह में
पुलकित आमोदित होता तनमन ।
बंद आँखें भी खुल जाती है
सपने सारे मकडजाल की तरह
अगणित अपहुंच द्वार पर ।
निर्दिष्ट लक्ष्य से विधाता ने बनाया तुम्हें
विभिन्न रंग रूप रस देकर
जिसकी जोड़ बाकी गुना भाग
न तो कभी हुआ और न कभी होगा ।
तुम्हारे आधे अंग
आदमी के आधे अंगों से मुक्त होने पर
जीवन धन्य होगा और
टल जाएगा संघात ।
लिखते कितनी नीति कथा तुम्हारा जीवन संगीत
वहीं अपरिमित तुम्हारा धैर्य कितना
अब मेरी कथा सुनकर ।
महा सती साध्वी सीता जैसी नारी
सोने की मायावी हिरण के मरीचिका लोभ में
बिन बुलाया दुख आमंत्रित किया सब के लिए
अन्यथा नारी के लिए क्यूँ नर कष्ट सहे ?
इस तरह मेरी बात नहीं हुई समाप्त
मेरी लाड़ली कन्या कभी नहीं दोहराएगी वह कटु कथा
पति गुरुजनों के अज्ञाधीन विश्वसनीय देवर
कटुबात कहकर सीता ने खोला अभेद्य आवरण
फिर भी लक्ष्मण ने खींची थी तीन रेखाएँ
तब से यहा कहावत बनी –
लक्ष्मण रेखा पार करने पर संकट अवश्य  आएगा ।

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