उत्सर्ग

उत्सर्ग

छात्र अवस्था से कविता लिखने का प्रबल आवेग धीरे-धीरे मेरे परिपक्व  वयस में आसक्ति के रूप में रूपांतरित होता गया,जिसका उत्स मेरे पिता स्वर्गीय  रूद्रमोहन मिश्रा,माता स्वर्गीय कृष्णप्रिया देवी की प्रेरणा और प्राणप्रिय पत्नी श्रीमती कानन बाला की नीरव आकृति ने इस कविता-संग्रह को पुस्तक का रूप प्रदान किया है।मेरे पुत्र,पुत्र-वधूएं,पुत्री,दामाद,पोते-पोतियां और पोत्र-बहू,सभी के सामूहिक उत्साह ने इस पुस्तक के प्रकाशन-कार्य में सहायता की हैं।पोती आद्याशा की लगन और मेहनत तो अत्यंत ही प्रशंसनीय रही है।

“सीमंतिनी” के विमोचन-अवसर पर अपने स्वर्गीय माता-पिता और वामांगी स्वर्गीय कानन बाला की स्मृतियों को इस कविता-संग्रह में समर्पित कर अपने आपको भाग्यशाली मानता हूं।


ब्रह्मानंद मिश्र
“काननीका”
रेमुआं,तालचेर
अंगुल







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