भूमिका

भूमिका

कवि के इस कविता-संग्रह “सीमंतिनी” में 61 कविताएं प्रकाशित हुई हैं।इन कविताओं में अलग-अलग विषयवस्तु हैं।कभी बचपन की मधुर स्मृतियाँ तो कभी किशोरावस्था में बंधु-बांधवों से हुई झड़प और माता-पिता से जुड़ी हुई यादें हैं,जो उनकी कविताएँ ‘आत्मपरिचय’,‘स्मृति-परिणय’’, ‘मेरे लिए’,‘तुम्हारे लिए’, में प्रकट होती हैं। ‘स्मृति-परिणय’’ में कवि अपने विवाह की यादों को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करता है। इस कविता की  निम्न पंक्तियाँ  इसका उदाहरण हैं:-
पुरोहित के मंत्र
श्लोक,आहूति
सुसज्जित मंडप वेदी पर
सुशोभित अग्नि कविता ज्योति
सूर्याग्नि-सी मंडप की अग्नि
सर्व समक्ष रखकर साक्षी
पाणि-ग्रहण के बाद
सिंदूर तिलकित भाल
सीमन्तिनी वेश में सजी-धजी
अपलक निहारता आत्मविभोर होकर
शोभा उसकी 
इसी तरह उनकी कविताओं में कभी जीवन के उत्तरार्ध की व्यथा,निसंगता और एकाकीपन उनकी कविताओं ‘लक्ष्मण-रेखा’,‘कानन-बाला,’ ‘निसंग जीवन’ में उभर कर सामने आता हैं। ‘लक्ष्मण-रेखा’’ की पंक्तियाँ द्रष्टव्य है:- 
महासती साध्वी सीता जैसी नारी
सोने की मायावी हिरण के मरीचिका लोभ में
बिन बुलाया दुख आमंत्रित किया सब के लिए
अन्यथा नारी के लिए क्यूँ नर कष्ट सहे ?
इस तरह मेरी बात नहीं हुई समाप्त
मेरी लाड़ली कन्या कभी नहीं दोहराएगी वह कटु कथा
पति गुरुजनों के अज्ञाधीन विश्वसनीय देवर
कटुबात कहकर सीता ने खोला अभेद्य आवरण
फिर भी लक्ष्मण ने खींची थी तीन रेखाएँ
तब से यहा कहावत बनी –
लक्ष्मण रेखा पार करने पर संकट अवश्य  आएगा ।


घर-परिवार के माहौल के अन्वेषण करने के अतिरिक्त कवि अपने आस-पास के परिवेश से भी प्रभावित हैं।जब उनका संवेदनशील हृदय अपनी जन्म-भूमि के दुखदर्द से कराह उठता है तब वे यहाँ के युवा-शक्ति को समय रहते चेतने का संदेश भी देते हैं।उनकी कविताओं ‘तालचेर ग्रामवासी’, ‘तालचेर वासी को आव्हान’, ‘हम ओड़िया’, ‘भाग्य-रवि युवा-शक्तिगण’ में कवि ने तालचेर में कोयला से हो रहे प्रदूषण तथा श्रमिकों के शोषण के प्रति भयंकर आक्रोश प्रकट किया है।‘तालचेर ग्रामवासी’में कवि ने तालचेरवासियों को ‘उतिष्ठ,जाग्रत’ होने का संदेश हैं:-
बचे हुए ज्ञानी तालचेर वासी
जागो, विश्वास रखो अपने सामर्थ्य पर
अत्याचार के ज्वार में मत बहो ।
आज के तालचेर ग्रामवासी
अपनी इज्जत का अनुभव, एकता का अस्त्र
समझौता,कलुषता को छोड़
तेजी से धावा बोलो।
जिससे हिल जाएगा शासन-प्रशासन
एमसीएल,एनटीपीसी
वह शुभ घड़ी आ गई अब
एकाग्रचित्त होकर पकड़ लो जाने
और सब कुछ बासी हो जाएगा
हाथ से निकल जाएगा। 

‘हम ओडिया’ कविता में कवि ने ओड़िया भाषा की वैज्ञानिकता,लोक-ग्राह्यता,सम्प्रेषणशीलता की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए अँग्रेजी भाषा के अनेकार्थी उच्चारण पर स्थानीय नामों के सहारे व्यंग्य किया हैं:-
अँग्रेजी में ‘ओरिसा’
और राजधानी ‘कुत्तक’
अनुगोल का नाम अंगुल
और बना रेढ़ाखोल-रेराखोल
ऐसे अनेकों नाम
चले हैं,चल रहे हैं,चलेंगे
बिना किसी बाधा और विवेक के
हमारे पड़ोसी की नजरों में
ओडिया कोई भाषा नहीं
और हम कहते हैं, क्या हो गया
हमें कोई परवाह नहीं ?
‘भाग्य-रवि युवा-शक्तिगण’ कविता में कवि ने युवाशक्ति को जगाने का आह्वान किया हैं:-
हे! हमारे भारत के भाग्य रवि युवा शक्तिगण
तुम सभी में है, भरपूर अच्छे गुण ॥1॥
पिता,माता गुरुजन  मां मिट्टी देश के भूषण
सब होकर भी कुछ नहीं जैसे भोग रहे हो कषण ॥2॥

कवि की कल्पना-शक्ति धीरे-धीरे तालचेर से ऊपर उठकर व्यापक रूप ग्रहण करती हैं और अपने समय की राष्ट्रीय समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट करने लगती हैं। इन कविताओं में ‘आओ गांधी आंबेडकर’, ‘मेरा भारत महान’, ‘मनमोहन अमर्त्य सेन भेंट’,‘गणतंत्र घुटनों के बल’, ‘हमारा गणतंत्र भारत’ इत्यादि उल्लेखनीय हैं। ‘आओ गांधी आंबेडकर’ में वर्तमान राजनीति पर महापुरुषों गांधी,अंबेडकर आदि के सिद्धांतों को ताक में रखकर कुचक्र करने पर दुख व्यक्त किया है:-
परित्यक्त कुचक्री कर रहे हैं अधिकार
उन आसार राज्य को मिलेगा सार ?
आत्मा चोटिल होती है कातर पुकार
आहे गांधी, भीमराव तुम्हारे लिए संभव
सत्ताहीन तुम हो आज –

उत्कल-भूमि में जन्म लेने के कारण जगन्नाथ-संस्कृति की रूपरेखा अपने आप के कवियों की लेखनी में उतर जाती है।यह इस पावन भूमि का वरदान हैं।कवि अपनी कविताओं में आध्यात्म,भारतीय संस्कृति,धार्मिक विचारधाराओं पर प्रकाश डालते हैं।यह परंपरा आपकी कविताओं में साफ दिखाई देती हैं। उदाहरण के तौर पर ‘प्रभु दुखहर्ता’, ‘हरि आर्तत्राण’,‘विरह जगन्नाथ’,‘कालिया भरोसा’,‘भक्त की पुकार, जगन्नाथ’,‘हे पंडा पड़ियारी जगन्नाथ सेवक’,‘हे कालिया गोसाई’, ‘उठ हे कालिया कान्हा’ ‘माँ हिंगुलाई’ आदि आपकी कविताओं में उत्कलीय परंपरा की स्पष्ट झलक मिलती है।‘हरि आर्तत्राण’ की पंक्तियाँ देखें:-
मेरे जीवन की अवधि
तुम्हारे हाथों में बंधी
सब कुछ करते हो
कुछ भी नहीं दुविधा
‘विरह में जगन्नाथ’ में कवि ने अपने विरह–दुख से उबरने हेतु प्रार्थना की है :-
प्रभु जगन्नाथ,मुझे और दुख
मत दो,मत दो,मत दो
सब सुख मेरा छीन लेते हो
लहरा कर नील-चक्र ध्वज ॥1॥
जीवन संगिनी सरल,निष्पाप
दे रही थी मेरा साथ
क्या सोचकर,असमय उसे मार दिया
किया तूने मेरा भाग्य भंग ॥2॥
‘आहे कालिया गोसाई’ में कवि भक्त की वेदना अभिव्यक्त हुई है:- 
आहे कालिया गोसाई
सारे ब्रह्मांड में अद्वितीय तुम
अतुलनीय तुम  ॥1॥
इच्छामयी अंतर्यामी
भगत की वेदना आपसे अनजानी ?
दुख भोगता किसलिए ॥2॥

 कवि की पहली कृति “सीमंतिनी” की काव्य-प्रेरणा उनकी धर्म-पत्नी काननबाला का असामयिक बिछोह है। इस वजह से विरह की आग,आँसू,क्रंदन,हृदय की संवेदना और मन की अभिव्यंजना कविताओं की पंक्तियों के रूप में अभिव्यक्त होने लगती हैं। ऐसी ही कुछ कविताएं भी इस संग्रह में संकलित हैं,जिसमें ‘कानन दर्शन’, ‘दूज के चांद की प्रिया’, सीमंतिनी’,’मेरी प्रिया कांता’ ‘कानन बाला’आदि हैं।
‘कानन दर्शन’ में कवि अपनी पत्नी की स्मृतियों को उजागर किया है:-
 नहीं थी कार्य में आसक्ति
फिर भी थी प्रवृत्ति
स्वामी के आग्रह-संग
रखकर अपनी सहमति ॥12॥
छल-कपट से दूर
शांति से रहने के लिए
मोक्ष पाने को निरंतर
सोच रही थी मन में ॥13॥
‘दूज के चांद की प्रिया’ में कवि की यौवन की यादें तरोताजा होती है:-
मंद-मंद मुस्कुराहट का झरना
बह रहा था उसके होठों से
तिरछी निगाहों के इशारों से
करती हुई आलिंगन ॥2॥
झीने बसनों से ढके अंग
याद आ रही थी सुहाग रात
देखकर जाग रहा था प्रबल सिहरन
आमोदित हो रहा था हृदय प्रगाढ़ चुंबन ॥3॥

‘कानन बाला’ में कवि फोटो में अपनी पत्नी को देखकर भाव-विव्हल हो उठता है:-

फोटो में देखते हैं तुम्हारा चेहरा
एक बार ना देखें तो मन मानता नहीं
रहा स्मृति में अविस्मरणीय
नतमस्तक होकर प्रणाम करते हैं हर दिन
मिनी दीनी जुनी टुनी अधीरा
बापू टीटो साटो अंतर में याद करते हैं
चिंता करते हैं मां लौटेगी जरूर
इच्छा करते हैं,मन महकता है

इन कविताओं में उनका प्रेम कथा को स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर अग्रसर होता हुआ नजर आता है।हिन्द मजदूर सभा जैसे श्रमिक संघ के पूर्व अध्यक्ष होने के कारण उनकी साहित्यिक आलोच्य दृष्टिकोण पर विशेष प्रभाव पड़ा हैं।पाश्चात्य आलोचक टी॰एस॰इलियट और मैथ्यू आर्नल्ड की अवधारणा उनकी कविताओं में आसानी से देखी जा सकती है।उनकी कविताएं ‘आज की गद्य कविता’, ‘हम कवि-कवयित्री’, ‘अतीत-वर्तमान-भविष्य’ में इस अवधारणा को आसानी से देखा जा सकता है। बिना सिर पाँव की, बिना रूपरेखा या सत्ता की आधुनिक कविताओं को अपनी कविता ‘आज की गद्य कविता’’में प्रस्तुत किया हैं:-
सब समझकर भी
नदी के मध्य
डूबता मेरा नासमझ मन
श्रद्धा पूर्वक लिखता है कविता
कब क्या लिखा
कुछ याद नहीं
अर्थ पूछने पर लड़खड़ाने लगती है जीभ
कहते है उसे गद्य कविता
बिना सिर पाँव की, बिना रूपरेखा या सत्ता की ।


‘हम कवि-कवयित्री’ में “कविता क्या होती है ?, कैसे रची जाती है ?, कविता के उद्देश्य क्या है ?” आदि प्रश्नों पर सहजतापूर्वक अपना समाधान दिया है:-

किसान हल जोतने
कृषिकर्म करते अपनी जमीन पर
लिखता है कविता
बैलों को हाँकते समय वह भी गुनगुनाता है ?
ब्राह्मणी नदी के किनारे
नाव को नदी के बीच खेते समय
केवट के कंठ की मधुर तान
क्या तुम्हारी कविता की पंक्ति बनती है ?
अंत में,यह कहा जा सकता है कि इस वैविध्यतापूर्ण कविता-संग्रह में कवि की सूक्ष्म अंतरदृष्टि,स्पष्ट अभिव्यक्ति,सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं पर करारा प्रहार,विक्षोभ,निर्भयता,यथार्थवादिता के दर्शन होते हैं। कवि की प्रतिभा और कविता के मर्म ने अनेक ओड़िया पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है।यह हिन्दी अनुवाद हिंदी जगत के लिए एक वरदान साबित हो,  ऐसी मेरी कामना है।पिता तुल्य कवि श्री ब्रह्मशंकर मिश्रा के दीर्घ निरोगी जीवन की कामना करते हुए भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना करता हूं कि उनकी सारस्वत साधना अनवरत चलती रहे और साहित्य अनुरागियों को लाभान्वित करती रहे।  इसी कामना के साथ
दिनेश कुमार माली
तालचेर










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