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कवि परिचय

कवि परिचय:- श्री ब्रह्मा शंकर मिश्रा तालचेर के एक प्रसिद्ध ओड़िया कवि हैं।एक संघर्षशील श्रमिक नेता होने के साथ-साथ शिक्षा एवं समाज-सेवा में भी उनका अतुलनीय योगदान रहा है।ओड़िशा के प्रसिद्ध ज्योतिषी स्वर्गीय रुद्रमोहन मिश्रा और स्वर्गीय कृष्ण प्रिया देवी के यहाँ दिनांक 09.05.1939 को तालचेर के कंढाल गाँव में जन्मे बचपन से ही भाव-प्रवण और कुशाग्र बुद्धि के धनी थे।उनका अंतर्मुखी स्वभाव उन्हें साहित्य की तरफ खींच लाया।उन्होंने अपने जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव देखे। तालचेर की युवराज उच्च अंग्रेजी विद्यालय से सन 1954 मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास करने के बाद ओड़िशा सरकार के शिक्षा एवं सामुदायिक ब्लॉक में कुछ समय तक वे अपनी सेवाएं देते रहे। बाद में ओड़िया अखबार ‘खबर’ तथा ‘समाज’ के प्रसिद्ध संवाददाता दिवंगत दिवाकर मिश्र की बड़ी पुत्री काननबाला के साथ सन 1959 मंज परिणय-सूत्र में बंधे।  श्री मिश्रा ने नेशनल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा संचालित देउलबेड़ा  कोयला खदान के विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए कोयलांचल में अपनी एक नई पहचान बनाई।एक अच्छे वक्ता और सुलझे हुए व्यक्तित्व होने के कारण उन्हें हिन्द मजदूर

51 से 61 तक

51. अतीत वर्तमान भविष्य अतीत मेरा क्या था,नहीं ध्यान धारणा शैशव तो निश्चय था फिर क्यों प्रताड़ना ॥1॥ उस समय की धुंधली अनुभूति छिपी हुई सुख-दुख स्मृति ॥2॥ मैं नहीं था पुत्र केवल माता-पिता का दादा-दादी के खेलने का खिलौना बड़े पापा,बड़ी मां,चाचा-चाची का प्यार फूफा-फूफी,मौसा-मौसी सभी का दुलार "यह मेरा,वह तुम्हारा" की विभोर भावना न होकर कह रहा था खुशी पूर्वक संसार कितनी भौतिकवादी विचारधारा प्रखर लिखा है मधुसूदन राव कविवर " बैकुंठ समान वह घर पलता जहां परस्पर प्रेम" वर्तमान में अपने कहने का जोर कहने पर होगा पत्नी-प्रेम में अंतर मां कहती थी स्त्री कमर की ओर देखकर स्नेहमयी माँ चाहती पुत्र पेट को संयुक्त परिवार सब हो गए चकनाचूर सब जानते,समझते मगर न करते  विचार सुकोमल बच्चों पर होता शिक्षा का भार  शिशु सुलभ बाल्य चपलता हो गई कितनी दूर मनुष्यता,सरसता छिप गई लोभ-अंतराल अकाल नीती आदर्श थी किस काल वर्तमान कटता विकलता में हलाहल चतुर्दिग छल कपट, पाशों का खेल यौवन के अपरहन में सहजता से पहुंची द्वार पागलपन विलय घटता, सोचने का वक्त नहीं जीवन बच गया मेरा

41 से 50 तक

41. पतित पावन सुनो विनती तुम पतित पावन चारों ओर पतित लोगों को तुम उद्धार करते हो कैसे समझू करता विनती तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो जाए,हे हरी                       कांता मेरी, को क्यों किया दूर  वह तो थी मेरी संपत्ति और शक्ति पूजा उपचार तुम्हारे ऊपर उसकी अपरिसीम अधिक भक्ति  ॥1॥ न था बहाना, झूठ,प्रताड़ना                        हंसमुख,  किसे न था पता? सभी को अपना समझकर अपना स्वभाव,खुद की प्रेरणा ॥2॥ नम्र, शांत शिष्ट,हर जगह आदृत  परिवार को हमेशा संभालकर लेकर गढ़ी थी खुद के संबल से किस कारण लिया उसका जीवन हर ॥3॥ बार-बार उसकी स्मृति का आधार मन के आईने में आता बार-बार वामांगी नहीं थी सिर्फ बातों में सच में वह वामा-शक्ति का आधार ॥4॥ लायक उसके और देखूंगा क्या पूर्व जन्म में मेरा विश्वास बहुत तुम दया करो तो सब संभव प्रभु जगन्नाथ दुख दूर करो   ॥5॥ 42. आत्म-प्रत्यय मैं किस अहंकार को लेकर जीवन जीता हूं मुझे देखने से आदमी केवल अंधेरे में लकड़ी चलाता है ॥1॥ सभी की तरह उसके पास नहीं है किसी गुणों का खजाना सभी जानते-सुनते-समझते,समझाते नहीं हैं किसमें कितना है दम ॥3॥ खु

31 से 40 तक

31. छत्तिसा नियोग सेवा त्रिभुवन में एक देवता जगन्नाथ सामंत वह तो वर्णनातीत न आदि न अंत ॥1॥ अपलक नेत्रों से देखते स्वर्ग,मर्त्य,पाताल निगाहें सभी जगह केन्द्रित सीमाहीन सचल ॥2॥ छत्तिसा नियोग सेवा सेवा के बदले मेवा पुरुषानुक्रम भोग करते आह! कितना मनमोहक ॥3॥ सेवा की विधि रीति-नीति विधान अनुल्लंघनीय रचित तुम्हारा सम्मान ॥4॥ हे सम्मानीय छत्तिसा नियोग सेवाकारी ऐसा कर्म न करो जो हो निंदाकारी ॥5॥ 32.प्रेम (वैलेंटाइन डे के अवसर पर) प्रेम नहीं होता है केवल देह मिलन उसी तरह मग्न थे तो चिर-मिलन प्रेम में जब दो आत्माएं होती है एकाकार बंधन हुए अटूट कहता है अनाकार प्रेम में ऋतु,तारीख,वार वैलेंटाइन जरुरी नहीं होता दिन-रात चालू आइन जो वस्तु करती आकर्षण एक-दूसरे से करेगा कैसे समर्पण प्रेम की गंभीरता मापने का मंत्र कहाँ है अनिर्वचनीय वास करता है हृदय-कन्दरा में॥5॥ भावुक की भावना,कवि की कल्पना, दूसरों की अनुभूति का मोहताज नहीं प्रेमी युगल मूर्ति ॥6॥ वह तो विस्मय,अभय निर्भय कोलाग्रत लालसा विहीन अनुरक्ति संयम,सुसंहत ॥7॥ भ्रमण कर सकता है अनंत,आकाश,पाताल पृथ्वी में ज

21 से 30 तक

21.कौन होगा श्रेष्ठ ? पूछो,पूछो एक बार,मेरे प्रिय छात्र-छात्राओं जितने प्राध्यापक,अध्यापक कार्यरत इस विश्वविद्यालय में शिक्षा विभाग या महाविद्यालय में उनके आगे-पीछे की डिग्रियों के उत्स कहाँ से भरे हुए थे उनको घिस-घिस कर किया है हासिल आज क्यों उन डिग्रियों की जरूरत नहीं ॥1॥ गवेषणा के नाम पर प्रचार करते हो शिक्षा के ढांचे में परिवर्तन चाहिए ऐसे विचार फैलाते हो तुम्हारे पूर्व विद्वान शिक्षाविदों से केवल बहादूरी दिखाना सर वही आप्त वाक्य थोड़,वदी,खड़ा ॥2॥ अरे! शिक्षाक्षेत्र के बड़पंडा गण जिनके बच्चे पढ़ते हैं अंग्रेजी माध्यम में थोड़े नीचे देखने से करते हैं खिचड़ी नष्ट-भ्रष्ट हो रहा है छात्रों के जीवन तुम्हारे अहम का पता चलता है छात्रों की रिपोर्ट से बांध कर रखते हैं खुलती नहीं है पेटी ॥3॥ अरे जितने स्वार्थ अन्वेषी शिक्षा व्यवसायी तुम्हारा खत्म न होने वाला लोभ छात्र-छात्राओं के आराध्य देवता देर से ही सही तुम्हारे मन में चेता होंगे रे फिर नमस्य सारे समाज के तुम नहीं मजदूर ही गुणवान ॥4॥ तुम ज्ञानी विज्ञानी विद्यादाता बहुत नीचे आ गए अभी विश्लेषण होकर दधीचि देश में

11 से 20 तक

11. जागो मजदूर किसान जागो रे जागो खेतिहर मजदूर अल्प, मध्यम,लघु किसान राजनीति की मीठी बातों में और तुम न फँसो ॥1॥ अल्प धन विकल मन पुत्री समेटती उपले बेटा तुम्हारा दिहाड़ी मजदूर पाता नहीं पखाल बासी ॥2॥ सपने दिखाता गाँव का सरपंच परपंच फैलाता हँसते हँसते चुटकले कहते कहते कूजी नेता बरामदे में बैठे बैठे ॥3॥ बड़ी बड़ी गप्पे हाँकते हाँकते पुकारते अरे मौसी तुम्हारा पति कहाँ गया ? यह कह कर घुस आते घर में ॥4॥ चुगलखोर वह लड़का करने लगता इशारा अछि बहन मेरी बात सुनो अमुक चिन्ह को वोट दे कर आना ॥5॥ बक बक क्यों करते हो सपने किसे दिखा रहे हो माँ व्यभिचारिणी पिता हरामी धिक्कार तुझे लाज शर्म नहीं आती॥6॥ होशियार बनो ठगे मत जाओ गाँव साहूकार जंगल बैंक कृषि ऋण सहज नहीं आत्म हत्या क्यों कराओगे भाई ॥7॥ खेत खाली मत रखो भाई चेहरे का पसीना मुंह तक आता जानते हो तुम खेती लगातार समय रहते ही जागने से जाओगे तर ॥8॥ अन्य बातों में दूसरों की जमीन पर मत रखो ज्यादा लोभ बड़ा विषम अपनों के बीच लगाते झगड़े गाँव के टाउटरों को नहीं कुछ शर्म ॥9॥ खेत मजदूर अल्प किसान माध्यम किसान से कंधा मिलाओ फ

1 से 10 तक

1.आत्म-परिचय श्री रूद्र मोहन तनय मैं हूं कंढाल गांव में घर कृष्ण प्रिया का नयन-मणि नाम मेरा ब्रह्माशंकर ॥1॥ गोविंद प्रहराज का पडनाति मैं त्रिलोचन जी का नाती बालकृष्ण मिश्र दादाजी मेरे कुंजाम गांव की ख्याति ॥2॥ कानन बाला सहधर्मिणी, ससुर मेरे दिवाकर सुनाम धन्य चित्रशिल्पी “समाज” के व्यंग्यकार ॥3॥ पढ़ाई मेरी मैट्रिकुलेशन छात्र ‘युवराज’ का उच्च विद्यालय बनाया जिसे महाराज श्रीकिशोर ने ॥4॥ सन् 1936 6 मई,बुधवार वैशाख पूर्णिमा स्वाति तुला मेष लग्न में हुआ जन्म मेरा ॥5॥ 2॰ दुखहर्ता प्रभु चरण कमल पकड़ साष्टांग प्रणाम करने से आशीर्वाद देना ही होगा पाँव नहीं होने का बहाना करने से  उत्कल वल्लभ, कैसे होगा ?  ॥1॥ हाथ नहीं इसलिए कुछ नहीं दे पाएंगे,ऐसा तो नहीं  तुम पर आसक्ति रखकर भक्त करते हैं अनुनय-विनय ॥2॥ चकाडोला की आंखेँ सभी को देखती है दुखी लोगों का अगाध विश्वास बड़े मंदिर में लक्ष्मी का अथाह भंडार है वितरण करने से भी कभी शेष नहीं होगा ॥3॥ ध्वज लहरा रहे हो पतित-पावन पतित लोगों का करके उद्धार असह्य दुखों से पीड़ित आर्त-जन हे! कृपा-सिंधु दुखहारी ॥4॥ द